लोगों की राय

पर्यावरण एवं विज्ञान >> अथ श्री जीन कथा

अथ श्री जीन कथा

नरसिंह दयाल

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13727
आईएसबीएन :9788126714292

Like this Hindi book 0

हालाँकि ये बीस कहानियाँ नहीं, कहानियों जैसी ज़रूर हैं, जिन्हें लेखक ने अत्यन्त सरल और प्रवाहमयी भाषा में लिखा है

अथ श्री जीन कथा बैंगन के पौधे में बैंगन ही क्यों, टमाटर क्यों नहीं? खरगोश से खरगोश ही क्यों पैदा होता है? कौए काले ही क्यों होते हैं, उजले क्यों नहीं? - सभ्यता के आरम्भ काल से ही ऐसे कई सवालों से मनुष्य टकराता रहा है। अथ श्री जीन कथा पुस्तक आनुवंशिक विज्ञान के ऐसे तमाम सवालों का जवाब व्याख्या सहित देती है। बीसवीं सदी की शुरुआत में ग्रिगोर मेंंडल द्वारा प्रतिपादित आनुवंशिकी आज एक सम्पूर्ण और प्रौढ़ विज्ञान बन चुकी है। मात्र सौ सालों के अल्पकालिक इतिहास में ही इस विज्ञान ने आणविक जीव विज्ञान, जैव-प्रौद्योगिकी और जीनोमिकी जैसे नए विज्ञानों को जन्म दे दिया है। नरसिंह दयाल के अथक श्रम की सुफल यह पुस्तक जीन विज्ञान की ऐतिहासिक कथा-यात्रा को हमारे सामने प्रस्तुत करती है। यात्रा के प्रमुख पड़ावों को इसमें समाहित किया गया है। विषय को बीस अध्यायों में विभक्त किया गया है जिनमें जीन-कथा को लेखक ने क़िस्से और कहानी की शैली में कहने का सफल प्रयास किया है। हालाँकि ये बीस कहानियाँ नहीं, कहानियों जैसी ज़रूर हैं, जिन्हें लेखक ने अत्यन्त सरल और प्रवाहमयी भाषा में लिखा है।

प्रथम पृष्ठ

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai